भारत में मेघालय राज्य के पूर्वी हिस्से में हैं कोंथोंग गाँव, ताड़ के पेड़ो के बीच बसे गाँव के लोग खेती और शिकार करके ही अपना पेट चलाते हैं।
ये गांव भी भारत के किसी अन्य गाँव जैसा ही दिखता है पर यहाँ की एक ख़ास बात है यहाँ लोग एक दूसरे को नाम से नहीं बल्कि धुन से बुलाते हैं। यहाँ हर आदमी के लिए एक अलग धुन होती है और ये धुन वाला नाम किसी दूसरे व्यक्ति का नहीं हो सकता।
ये धुन बच्चे की माँ ही बच्चे को देती है, दरअसल जब बच्चा पेट में होता है तब ही उसकी माँ उसके लिए धुन सोचना शुरू कर देती है। ये धुन प्रकृति और पक्षियों से मिलती जुलती है क्योंकि इस गाँव के लोग मानते है की मनुष्य भी प्रकृति का एक छोटा सा हिस्सा है।
माँ के धुन देने के बाद धीरे धीरे सब लोग छोटे बच्चे से उसी धुन में बात करते हैं , ऐसे बच्चे को पता लग जाता है की ये धुन ही मेरा नाम है।
ये प्रथा कितनी पुरानी है इसका नहीं पता पर ये लोग मानते हैं की सभ्यता के शुरआत से ही ऐसा करते आ रहें हैं । ये लोग बोलते हैं ये ऐसा इसलिए करते क्योंकि इस से शिकार करते हुए मदद मिलती है और शिकार करना आसान हो जाता है और ऐसे धुन में नाम बोलने से पहाड़ों में आवाज़ जल्दी पहुँचती है ।
इस गाँव के लोगों की एक पुरानी परम्परा है इसमें ये हर गर्मियों में पूर्णिमा के दिन ये लोग रात को एकत्रित होते हैं और गाँव के अविवाहित व्यक्ति अपने नाम की धुन कगाकर सुनाते हैं और जो पुरुष सबसे अच्छी तरह अपनी धुन सुनाता है गाँव की सबसे सुन्दर युवती की शादी उस से कर दी जाती है।
इस गाँव की लोक कथाओं में भी बताया जाता है की कैसे धुन वाले नाम की वजह से गाँव के लोग डकैतों से बच गए और कैसे लोगों ने विषम हालातों में भी धुन से गाँव को लोगों तक सन्देश पहुचाएं ।
स्थानीय प्रशासन ने भी अब इस गाँव की इस पहचान को बचाने का फैला कर लिया है और अब सरकार ने यहाँ पे गेस्ट स्टे बनाने का भी फैसला लिया है जिससे बाहर के लोग भी यहाँ आकर इस अजब गजब गाँव को देखे और इस से पर्यटन भी बढ़ेगा। तो अगली बार जब आप मेघालय जाएँ तो कोंथोंग जाना न भूलें
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