Artificial Rain In Delhi : प्रदूषण कम करने के लिए क्लाउड सीडिंग ट्रायल शुरू!
Artificial Rain In Delhi : दिल्ली में आर्टिफिशियल बारिश (क्लाउड सीडिंग) का प्रयोग किया जा रहा है, ताकि वायु प्रदूषण और धुंध की समस्या आदि से राहत पाई जा सके।
इसके लिए एक विशेष विमान IIT कानपुर के सहयोग से कानपुर से उड़ान भर चुका है, जो अब दिल्ली-एनसीआर के ऊपर क्लाउड सीडिंग के प्रयोग के लिए तैयार है। इस ऑपरेशन का लक्ष्य क्षेत्र दिल्ली का उत्तर-पश्चिमी इलाका, विशेष रूप से बुराड़ी और उसके आसपास के क्षेत्र रखे गए हैं।
यह कैसे काम करेगा?
क्लाउड सीडिंग का अर्थ है: मौजूदा बादलों में ऐसे पदार्थ छोड़े जाना जो पानी के कणों को बड़े बूंदों में समेकित होने में मदद करें, जिससे बारिश या बूंदाबांदी हो सके।
क्लाउड सीडिंग की पूरी प्रक्रिया (Cloud Seeding process)
क्लाउड सीडिंग यानी कृत्रिम वर्षा कराने की तकनीक का मकसद होता है कि वातावरण में बादल तो हों, लेकिन वे खुद से बारिश न कर पा रहे हों, तो उन्हें प्रेरित करके बारिश करवाई जाए।
बादलों की पहचान
- सबसे पहले वैज्ञानिक यह जांचते हैं कि आकाश में पर्याप्त बादल मौजूद हैं या नहीं। फिर उनमें नमी (Moisture Level) कितनी है?
- सामान्यतः 50% या उससे अधिक आर्द्रता (humidity) जरूरी होनी चाहिए है, ताकि बादल में पानी के सूक्ष्म कण मौजूद रहें।
- अगर बादल बहुत सूखे हों या नमी कम हो, तो क्लाउड सीडिंग काम नहीं कर पाती है, जैसे कि दिल्ली में पहले एक ट्रायल इसी कारण विफल रहा था।
पदार्थ का छिड़काव
जब मौसम अनुकूल होता है, तो एक विशेष विमान (या कभी-कभी जमीन से लॉन्च किए गए रॉकेट) के ज़रिए बादलों पर सीडिंग एजेंट्स को छोड़े दिया जाता हैं। विमान बादलों के अंदर उड़ते हुए इन पदार्थों को फैलाता है। इन एजेंट्स में आमतौर पर शामिल हैं:
- सिल्वर आयोडाइड (Silver Iodide - AgI)
- सोडियम क्लोराइड (नमक के कण) (Sodium Chloride)
- पोटेशियम आयोडाइड (Potassium Iodide)
संघनन (Condensation Process)
सीडिंग एजेंट्स बादल के अंदर मौजूद जलवाष्प (Water Vapour) को आकर्षित करते हैं। जलवाष्प इन कणों के चारों ओर जमा होकर बड़ी पानी की बूंदों में बदलने लग जाता है। जब ये बूंदें भारी हो जाती हैं, तो वे गुरुत्वाकर्षण (gravity) के कारण नीचे गिरती हैं और यही बारिश कहलाती है।
क्यों किया जा रहा है?
दिल्ली में सर्दियों के मौसम में वायु गुणवत्ता बेहद खराब हो जाती है। इसकी प्रमुख वजह वाहनों से निकलने वाला धुआँ, उद्योगों के उत्सर्जन, आसपास के खेतों में पराली जलाना और हवा में फैली धूल है। जब बारिश नहीं होती या हवा नहीं चलती, तो ये प्रदूषक कण वातावरण में ही फँसे हुए रहते हैं और स्थिति और भी ज्यादा बिगड़ जाती है।
इन सभी के कारण सरकार को उम्मीद है कि क्लाउड सीडिंग तकनीक की मदद से होने वाली कृत्रिम बारिश, इन हानिकारक कणों को नीचे गिरा सकती है। जिससे वायु की गुणवत्ता सुधरेगी, विजिबिलिटी बढ़ेगी और लोगों को प्रदूषण से अस्थायी राहत भी मिल सकेगी।
किन बातों का ध्यान रखा जा रहा है?
मौसम का अनुकूल होना बेहद जरूरी है यानी बादल हों, नमी पर्याप्त हो और विजिबिलिटी विमान के लिए ठीक रहेगी। कानपुर में विजिबिलिटी अभी नीचे थी।
यह पूरी तरह समाधान नहीं है लेकिन इस पर वैज्ञानिकों ने कहा है कि क्लाउड सीडिंग सिर्फ उपाय है, कारणों (जैसे वाहनों का धुआँ, खेतों में जलाई जाने वाली धान आदि) पर काम करना जरूरी है।
इसको लागू करने की चुनौतियाँ और सीमाएँ
मौसम का अनुकूल होना जरूरी है क्योंकि बादल की मौजूदगी, नमी, तापमान, हवा की गति सभी मिलकर तय करते हैं कि सीडिंग सफल होगी या नहीं। अगर बादल नहीं होंगे या बहुत कम नमी होगी, तो क्रिया विफल हो जाएगी।
प्रभाव सीमित हो सकता है वैश्विक अध्ययन बताते हैं कि क्लाउड सीडिंग बारिश को कुछ % तक ही बढ़ा सकती है जो कि 5-15% हो सकती है, लेकिन यह एक गारंटी नहीं है।
वास्तविक वजह को नहीं हटाती है, उदाहरण के लिए वाहनों से निकलने वाला धुआँ, उद्योगों से निकलने वाला धुआँ, पास के राज्यों से आने वाला धुंध आदि, इनसे सीधे मुकाबला नहीं किया जा सकता है।
पर्यावरण-सुरक्षा व स्वास्थ्य-प्रभाव के लिए उपयोग किए जा रहे रसायनों (सिल्वर आयोडाइड, नमक) के दीर्घ-कालीन प्रभावों पर शोध सीमित है। कुछ वैज्ञानिक इसे सिर्फ “गिमिक” कह रहे हैं।
कब हो सकती है ये बारिश?
यदि मौसम सही रहा, तो यह कृत्रिम बारिश इस सप्ताह के अंदर (28-30 अक्टूबर) में हो सकती है।
लेकिन, आज-कल की खबरों में स्पष्ट है कि आज स्थानीय समय अनुसार विमान कानपुर से उड़ चुका है और बुराड़ी-दिल्ली में ऑपरेशन के लिए तैयार हो गया है।
निष्कर्ष
इस प्रयोग से एक उम्मीद जुड़ी है कि दिल्लीवासियों को सर्दियों में वायु प्रदूषण से थोड़ी राहत मिल जाएगी। लेकिन यह याद रखना होगा कि यह सिर्फ एक टूल है, मूल समस्या का पूरी तरह समाधान नहीं है। हमें ट्रैफिक, इंडस्ट्री और आसपास की ग्रामीण क्रियाओं पर भी काम करने की ज़रूरत है।
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