दिवाली क्यों खास है और इसके पाँच दिन कैसे मनाए जाते हैं?
‘दीवाली’ या ‘दीपावली’ शब्द संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है, ‘दीप’ जिसका अर्थ है दीया, प्रकाश या रोशनी, और ‘अवली’ जिसका अर्थ है पंक्ति या श्रृंखला।इसका अर्थ हुआ दीपों की पंक्ति या दीपों की श्रृंखला।
लेकिन यह शब्द सिर्फ एक भौतिक रोशनी की बात नहीं करता, बल्कि आंतरिक प्रकाश यानी ज्ञान, सत्य और जागरूकता का प्रतीक है। जब हम दीप जलाते हैं, तो यह केवल अंधेरे कमरे को नहीं, बल्कि मन के अंधकार यानी नकारात्मक विचारों, अज्ञान और भय को मिटाने का संदेश देता है।
इसलिए दिवाली केवल उत्सव नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा भी है जो हमें याद दिलाती है कि सच्चा प्रकाश हमारे भीतर है, और जब हम उसे जगाते हैं, तो हमारे आस-पास की दुनिया भी रोशन हो जाती है।
दिवाली से जुड़ी पौराणिक और धार्मिक कथाएँ
दिवाली का उत्सव भारत के हर कोने में अलग-अलग धार्मिक कथाओं से जुड़ा हुआ है, जो प्रकाश की विजय का संदेश देती हैं।
उत्तर भारत
उत्तर भारत में यह दिन भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण के 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटने की स्मृति में मनाया जाता है। लोगों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया था। जो कि यह दर्शाता है कि प्रेम और प्रकाश से ही अधर्म और अज्ञान का नाश किया जा सकता है।
दक्षिण भारत
वहीं दक्षिण भारत में दिवाली भगवान कृष्ण द्वारा असुर नरकासुर के वध की खुशी में मनाई जाती है। यह धर्म की अधर्म पर विजय का प्रतीक माना जाता है।
पश्चिम भारत
पश्चिम भारत में व्यापारी समुदाय इसे नए वर्ष और व्यापार की नई शुरुआत के रूप में मनाते हैं। जहां धन की देवी लक्ष्मी और कुबेर की पूजा कर समृद्धि की कामना की जाती है।
जैन धर्म
जैन धर्म में यह दिन भगवान महावीर के निर्वाण यानी मोक्ष का प्रतीक माना जाता है। साथ ही यह दीपक ज्ञान और आत्मबोध के प्रकाश का संकेत देता है।
सिख धर्म
सिख धर्म में दिवाली उस दिन की याद में मनाई जाती है जब गुरु हरगोविंद जी को ग्वालियर किले से मुक्ति मिली थी। यह धर्म, स्वतंत्रता और न्याय की जीत का एक बड़ा संदेश देती है।
इस प्रकार, चाहे कथा कोई भी क्यों न हो, दिवाली का सार एक ही है। अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई, और अज्ञान पर ज्ञान की विजय।
दिवाली कैसे मनाते हैं?
दिवाली केवल एक दिन का नहीं, बल्कि पाँच दिन का भव्य पर्व होता है, जो धनतेरस से शुरू होकर भैया दूज तक चलता है। हर दिन का अपना एक विशेष धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व होता है।
दिन 1 - धनतेरस (Dhanatrayodashi)
इस दिन को समृद्धि और स्वास्थ्य का प्रतीक माना जाता है।
- लोग अपने घरों और कार्यस्थलों की सफाई व सजावट करते हैं।
- नए बर्तन, आभूषण या धातु की वस्तुएँ खरीदना शुभ माना जाता है।
- इस दिन धन की देवी लक्ष्मी और कुबेर देव की पूजा की जाती है।
- यह दिन “नए आरंभ” और “शुद्धता” का प्रतीक है।
दिन 2 - नरक चतुर्दशी / छोटी दिवाली
इसे रूप चौदस भी कहा जाता है।
- लोग सुबह जल्दी स्नान करते हैं, जिसे “अभ्यंग स्नान” कहा जाता है।
- घरों को सजाया जाता है, दीप जलाए जाते हैं, और पूजा की जाती है।
- यह दिन नरकासुर पर भगवान कृष्ण की विजय की स्मृति में मनाया जाता है।
- यह “अंधकार और नकारात्मकता से मुक्ति” का प्रतीक है।
दिन 3 - लक्ष्मी पूजा / बड़ी दिवाली
यह दिवाली का मुख्य दिन होता है।
- शाम को देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा होती है।
- दीपों की श्रृंखलाएँ (दीपावली) जलाकर घर, आँगन और मंदिर सजाए जाते हैं।
- मिठाइयाँ बाँटी जाती हैं, परिवार के साथ उत्सव मनाया जाता है।
- यह दिन प्रकाश, समृद्धि और आनंद का प्रतीक है।
दिन 4 - गोवर्धन पूजा / अन्नकूट
- इस दिन भगवान कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की कथा की याद में पूजा की जाती है।
- भक्त अन्नकूट प्रसाद बनाकर भगवान को अर्पित करते हैं।
- यह “प्रकृति, कृषि और आभार” का दिन है।
दिन 5 - भाई दूज / भैया दूज
- यह दिन भाई-बहन के स्नेह और सुरक्षा के बंधन को समर्पित है।
- बहनें अपने भाइयों को टीका करती हैं, उनकी लंबी उम्र और सुख की कामना करती हैं।
- भाई बदले में बहनों को उपहार देते हैं।
- यह दिन प्यार, विश्वास और परिवारिक एकता का प्रतीक है।
दिवाली के ये पाँच दिन केवल उत्सव नहीं, बल्कि जीवन के पाँच आयामों यानी शुद्धि, मुक्ति, समृद्धि, आभार और प्रेम का उत्सव हैं। यही कारण है कि इसे भारत का सबसे प्रकाशमय और पवित्र पर्व कहा जाता है।
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