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 नवरात्रि दिवस 3: माँ चंद्रघंटा - शांति प्रदान करने वाली योद्धा देवी!

By Rajni Editor | September 23, 2025
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Navratri Day 3: माँ दुर्गा का तीसरा स्वरूप माँ चंद्रघंटा है। माँ चंद्रघंटा साहस, शौर्य और निर्भयता की प्रतीक हैं। इनके मस्तक पर अर्धचंद्र के आकार की घंटी होती है जो दुष्ट शक्तियों का नाश करती है और भक्तों को निडर बनाती है। यह स्वरूप शांति और वीरता का संतुलन दर्शाता है।

माँ चंद्रघंटा का स्वरूप और वाहन

माँ का रंग स्वर्ण समान तेजस्वी है। इनके दस हाथ हैं, जिनमें कमल, धनुष-बाण, गदा, त्रिशूल आदि अस्त्र-शस्त्र सुशोभित हैं। माँ का वाहन सिंह है। यह स्वरूप साहस, वीरता और शत्रुओं के विनाश का प्रतीक है।

नवरात्रि के तीसरे दिन कैसे करें पूजा? 

  1. प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  2. माँ चंद्रघंटा की प्रतिमा या चित्र को गंगाजल से शुद्ध करें।
  3. कलश स्थापना कर उसमें जल, सुपारी, नारियल रखें।
  4. लाल या पीले फूल अर्पित करें।
  5. धूप, दीप और कपूर से आरती करें।
  6. ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः मंत्र का जाप करें।

माँ चंद्रघंटा को क्या अर्पण करें?

  • माँ को सुगंधित पुष्प, दूध और सफेद मिष्ठान्न प्रिय हैं।
  • विशेषकर खीर अर्पित करने का महत्व है।

माँ चंद्रघंटा की पूजा के लाभ

  • भय और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है।
  • आत्मविश्वास, साहस और शांति की प्राप्ति होती है।
  • जीवन में सौभाग्य और सफलता मिलती है।
  • कठिन परिस्थितियों और संघर्ष में विजय का आशीर्वाद मिलता है।
  • युद्ध और संघर्ष जैसी परिस्थितियों में विजय का आशीर्वाद मिलता है।

मां चंद्रघण्‍टा की आरती ( Maa Chandraghanta Aarti)

जय मां चंद्रघंटा सुख धाम।

पूर्ण कीजो मेरे सभी काम।

चंद्र समान तुम शीतल दाती।

चंद्र तेज किरणों में समाती। क्रोध को शांत करने वाली।

मीठे बोल सिखाने वाली।

मन की मालक मन भाती हो।

चंद्र घंटा तुम वरदाती हो।

सुंदर भाव को लाने वाली।

हर संकट मे बचाने वाली।

हर बुधवार जो तुझे ध्याये।

श्रद्धा सहित जो विनय सुनाएं।

मूर्ति चंद्र आकार बनाएं।

सन्मुख घी की ज्योत जलाएं।

शीश झुका कहे मन की बाता।

पूर्ण आस करो जगदाता।

कांची पुर स्थान तुम्हारा।

करनाटिका में मान तुम्हारा।

नाम तेरा रटू महारानी।

भक्त की रक्षा करो भवानी।

नोट:

यह लेख धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में वर्णित तथ्यों पर आधारित है। हमारा उद्देश्य किसी भी धर्म या विश्वास को आहत करना नहीं है, बल्कि केवल सांस्कृतिक और धार्मिक ज्ञान को साझा करना है।

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