Aravalli Hills Controversy: अरावली पहाड़ियों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से क्यों बढ़ी चिंता? आखिर क्या है अरावली विवाद?
Aravalli Range Dispute: अरावली पहाड़ियां, जिन्हें उत्तर भारत के फेफड़े भी कहा जाता है, पर्यावरणीय और राजनीतिक विवाद के केंद्र में आ गई हैं।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की एक नई परिभाषा को मान्यता दी, जिसमें ऊंचाई और वैज्ञानिक मानदंडों के आधार पर पहाड़ियों को अरावली के रूप में गिने जाने का फैसला किया गया है।
इसके बाद से सामाजिक, राजनीतिक और पर्यावरणीय समूहों के बीच मतभेद और गहरे हो गए हैं।
अरावली पहाड़ियों पर विवाद क्या है?
सरकार और सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अब केवल वही क्षेत्र अरावली माना जाएगा जिसकी ऊंचाई स्थानीय तल से 100 मीटर या उससे अधिक होगी, और अगर दो पहाड़ियां 500 मीटर के भीतर होंगी तो वह एक रेंज मानी जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद छोटे-छोटे टीले और पहाड़ी ढलान, जो पारंपरिक रूप से अरावली की इकोलॉजी में शामिल हैं, अब वह अरावली श्रृंखला से बाहर हो सकते हैं।
सरकार का पक्ष- संरक्षण और नियम
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा है कि इस फैसले का उद्देश्य अनियमित खनन पर अंकुश लगाना और पूरे क्षेत्र में वैज्ञानिक आधार पर नियम लागू करना है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि कुल 1.44 लाख वर्ग किलोमीटर में से 90% से अधिक हिस्सा संरक्षित रहेगा, और केवल लगभग 0.19% क्षेत्र में ही खनन की संभावना होगी।
इसके अलावा नए खनन पट्टे तब तक नहीं दिए जाएंगे जब तक एक सस्टेनेबल माइनिंग प्लान नहीं बन जाता।
अरावली पहाड़ियों को लेकर पर्यावरण कार्यकर्ताओं की चिंताएं
कई बड़े पर्यावरणविद् और स्थानीय समूह सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से असंतुष्ट हैं। उनका कहना है कि 90% से अधिक छोटी पहाड़ियां जो 100 मीटर से नीचे हैं, वे भी इकोलॉजिकल रूप से महत्त्वपूर्ण हैं।
भू-जल पुनर्भरण, जैव विविधता, वायु गुणवत्ता नियंत्रण और थार रेगिस्तान से रेत की धूल को रोकने में इन पहाड़ियों की अहम भूमिका है। यदि इन्हें हटाया गया, तो दिल्ली-एनसीआर समेत आसपास के इलाकों में धूल, पानी की कमी और गर्मी जैसी समस्याएं और बढ़ सकती हैं।
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राजनीतिक विवाद और प्रतिक्रिया
राजस्थान में यह मुद्दा राजनीतिक बहस का विषय बन गया है। भाजपा और कांग्रेस के नेता एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने केंद्र सरकार पर अरावली को बेचने का षड्यंत्र रचने का आरोप लगाया है, जबकि केंद्र सरकार ने इन आरोपों का खंडन किया है।
अरावली पर्वतमाला को बचाने के लिए आंदोलन और विरोध
उदयपुर सहित कई इलाकों में लोग सड़कों पर उतर रहे हैं और अरावली की सुरक्षा की मांग कर रहे हैं। प्रदर्शनकारियों ने कहा है कि यह सिर्फ पहाड़ों का सवाल नहीं, बल्कि इकोलॉजी, जल, और स्वास्थ्य सुरक्षा का मामला है। कुछ जगह लोगों की अधिकारियों से भिड़ंत भी हुई है।
अरावली पर्वतमाला क्यों महत्त्वपूर्ण है?
अरावली पर्वतमाला उत्तर भारत की जीवनरेखा है। यह मरुस्थलीकरण रोकती है, भू-जल रिचार्ज में मदद करती है, जैव विविधता को संरक्षण देती है और दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण व धूल को नियंत्रित कर पर्यावरण संतुलन बनाए रखती है।
भविष्य पर क्या होगा इसका असर?
विशेषज्ञों का कहना है कि इस विवाद का समाधान केवल नियमों में नहीं है, बल्कि विस्तृत वैज्ञानिक अध्ययन में है।
सरकार का दावा है कि यह कदम अरावली को और मजबूत करेगा, जबकि आलोचक कहते हैं कि मौजूदा उपाय अपर्याप्त हैं और कानूनी रूप से कमजोर हिस्सों को पर्यावरण जोखिम में डाल सकते हैं।
FAQs
1. अरावली पर्वतमाला कहाँ स्थित है?
उत्तर- अरावली पर्वतमाला गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली तक फैली हुई है।
2. अरावली को उत्तर भारत के फेफड़े क्यों कहा जाता है?
उत्तर- क्योंकि यह प्रदूषण और धूल को रोककर हवा को शुद्ध रखने में मदद करती है।
3. अरावली पर्वतमाला का पर्यावरण में क्या योगदान है?
उत्तर- यह भू-जल रिचार्ज, जैव विविधता संरक्षण और मरुस्थलीकरण रोकने में अहम भूमिका निभाती है।
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